रसीले गानो को ओढ़े एक शाम गुनगुनाती आयी |
मस्त मस्त फ़िज़ाओ की खुशबु बिखरायी ||
गुलाबी अधरो की पंखुड़ियाँ मुस्कुराई |
धीरे-धीरे गालों की लाली लौट आयी ||
पायल की खन खन से हवा भी इतराई |
प्यार की हिलोर से नशीली आंखें गदराई ||
हल्के छुअन के अहसास से, फ़िज़ा भी शरमाई |
खन-खन खनकती चूडियाँ ने ली अंगडाई ||
करवट करवट करके मैंने फ़िर एक शाम ढलाई |
रातभर तुम्हारे इंतजार में फ़िर नयी सुबह आयी ||
युवा गौरव। युक्ति वार्ष्णेय सरला
मुरादाबाद, ऊतर प्रदेश