कविता :- भोर
 

 

 

छटीं है धुंध चन्द्रमा अस्त

स्वर्णिम किरणों का उजियार ।

तिमिर के अश्व हुए हैं पस्त

उठो अब जागो कृष्ण मुरार।।

बरसती प्रेम सुधा चहुँ ओर

नवल ऊर्जा का हृद संचार ।

उदित दिनकर की मधुरिम भोर

सरित की धवल बही रस धार ।।

 

क्षितिज में प्राची का अरुणाभ

लालिमा बिखर रही हर छोर ।

विभा का सकल धुला विमलाभ

तरुणता बधीं प्रीत की डोर ।।

प्रकृति के अधरों पर मुस्कान

धरा के आंचल में आनन्द ।

शाख पर विहग करें मृदु गान

पवन भी सुरभित बहती मन्द ।।

 

 

 


प्रस्तुति:- युवा गौरव न्यूज़

कवियत्री:- रीना गोयल

सरस्वती नगर

हरियाणा