वो प्यार कर चला गया, वो प्रीत सी खड़ी रही
वो हार कर चला गया, वो जीत सी खड़ी रही...
ना ही कोई जश्न दिल में, ना है कोई भी खुशी
ज़िन्दगी की सरगमों में मौत सी पड़ी रही...
विदाई हो रही, नहीं है एक आंसू आँख में
न रुक सकी न बढ़ सकी वो तुंग सी अड़ी रही...
स्नेह युक्त गागरी छलक उठी है वारि सी
अक्षतों में आंसुओं की मोतियाँ जड़ी रही...
कुर्बानियों का उसकी एक जलजला गढ़ा गया
मंडली की नाक ऊँची शान से बढ़ी रही...
कवि मनु (मनीषा)
कानपुर, उत्तर प्रदेश