कविता :- पराई बेटियाँ
 

 

दो घरों को हैं सजाती बेटियां 

पर परायी ही कहाती बेटियां ।

 

हाथ से दोनों लुटाएं वो हसीं,

जब कभी आँगन में आती बेटियां ।

 

हर थकन से फिर मिले आराम है ,

खूब खुल जब खिलखिलाती बेटियां ।

 

आत्मा में है बसी पितु मात की ,

फिर पराये घर क्यों जाती बेटियां। 

 

बन सुकोमल फूल हर इक़ बाग का ,

प्रीत की बगिया सजाती बेटियां ।

 

 


प्रस्तुति - युवा गौरव 

कवि - रीना गोयल

सरस्वती नगर, हरियाणा

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